शिव के तीसरी नेत्र से उत्पन्न " कृतमुख ", जिसने खुद को ही खा लिए
भूख लगने पर व्यक्ति को भोजन के अलावा और कुछ नहीं सूझता है। इस समय बस यही चाहत रहती है कि जल्दी से कुछ मिल जाए जिसे खाकर भूख मिटायी जा सके। लेकिन अगर कोई भूख लगने पर अपने हाथ-पांव और पूरे शरीर को खा जाए तो इसे क्या कहिएगा।
भगवान शिव ने यही नाम दिया था उस देवता को जिसने भूख को मिटाने के लिए अपने ही अंगों को खा लिया था।
शिव पुराण एवं स्कंद पुराण में कृतमुख देवता की चर्चा मिलती है। इनके विषय में कथा है कि एक बार एक राक्षस ने देवताओं को पराजित कर दिया और उन्हें स्वर्ग से निकालकर स्वयं इन्द्र बन बैठा। इसके बाद वह कैलाश पर्वत पर पहुंचकर भगवान शिव से पार्वती को उसे सौंप देने के लिए कहा। भगवान शिव इससे बहुत क्रोधित हुए और अपनी तीसरी नेत्र से एक राक्षस को उत्पन्न किया। यह राक्षस भूख का प्रतीक था। शिव जी ने अपनी नेत्रों से उत्पन्न राक्षस से कहा कि वह पहले राक्षस को खा जाए।
शिव द्वारा उत्पन्न राक्षस को देखकर पहला राक्षस भयभीत हो गया और शिव जी से प्राणों की रक्षा की याचना करने लगा। शिव जी ने राक्षस को क्षमा कर दिया और अपने राक्षस से कहा कि उसे नहीं खाए। इस पर शिव जी का राक्षस कहने लगा कि उसे बहुत भूख लगी है।
अगर वह इस राक्षस को नहीं खाएगा तो उसकी भूख कैसे शांत होगी। इस पर शिव जी ने उसे अपने ही हाथ-पांव एवं शरीर को खाने के लिए कह दिया। शिव के अदेश से राक्षस अपने ही शरीर को खा गया।
इसके बाद भगवान शिव ने अपने नेत्र से उत्पन्न राक्षस को वरदान दिया कि अब से तुम कृतमुख नाम के देवता के रूप में पूजे जाओगे। जहां भी पार्थिव शिवलिंग की पूजा होगी वहां मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा होगी।
शिव के वरदान के कारण कृतमुख और भगवान शिव पर अर्पित अक्षत से कृतमुख की भूख शांत होती है। घर में खुशहाली और अन्न-धन की वृद्घि के लिए पार्थिव शिव के साथ कृतमुख की भी पूजा करनी चाहिए।
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