Wednesday, 8 August 2018

रावण का लगा 'पंचशूल'

रावण का लगा 'पंचशूल' के सिर्फ दर्शन से ही होती है मनोकामना पूरी

Image result for baba mandir panchshool

रावण ने  पंचशूल को इस मंदिर पर लगाया था, जिससे इस मंदिर को कोई क्षति नही पहुंचा सके.


भारत के प्रसिद्ध शैव तीर्थस्थलों में झारखंड के देवघर का बैद्यनाथ धाम (बाबाधाम) अत्यंत महत्वपूर्ण है. बैद्यनाथ धाम का कामना लिंग द्वादश ज्योतिर्लिगों में सर्वाधिक महिमामंडित कहा जाता है. यही कारण है कि यहां के ज्योतिर्लिग पर जलाभिषेक करने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है. इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके शीर्ष पर त्रिशूल नहीं, 'पंचशूल' है, जिसे सुरक्षा कवच माना गया है. 

धर्माचार्यो का इस पंचशूल को लेकर अलग-अलग मत है. मान्यता है कि पंचशूल के दर्शन मात्र से ही भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं. मंदिर के तीर्थ पुरोहित दुर्लभ मिश्रा आईएएनएस को बताते हैं, "धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि भगवान शंकर ने अपने प्रिय शिष्य शुक्राचार्य को पंचवक्त्रम निर्माण की विधि बताई थी, जिनसे फिर लंकापति रावण ने इस विद्या को सिखा था. पंचशूल की अजेय शक्ति प्रदान करता है."

कहा जाता है कि रावण ने लंका के चारों कोनों पर पंचशूल का निर्माण करवाया था, जिसे राम को तोड़ना आसान नहीं हो रहा था. बाद में विभिषण द्वारा इस रहस्य की जानकारी भगवान राम को दी गई और तब जाकर अगस्त मुनि ने पंचशूल ध्वस्त करने का विधान बताया था. रावण ने उसी पंचशूल को इस मंदिर पर लगाया था, जिससे इस मंदिर को कोई क्षति नही पहुंचा सके.
Image result for baba mandir panchshool
कई धर्माचार्यो का मानना है कि पंचशूल मानव शरीर में मौजूद पांच विकार-काम, क्रोध, लोभ, मोह व ईष्र्या को नाश करने का प्रतीक है. मंदिर के पंडा जयकुमार द्वारी आईएएनएस से कहते हैं कि पंचशूल पंचतत्वों-क्षिति, जल, पावक, गगन तथा समीर से बने मानव शरीर का द्योतक है. मान्यता है कि यहां आने वाला श्रद्धालु अगर बाबा के दर्शन किसी कारणवश न कर पाए, तो मात्र पंचशूल के दर्शन से ही उसे समस्त पुण्यफलों की प्राप्ति हो जाती है.


उन्होंने बताया, "मुख्य मंदिर में स्वर्ण कलश के ऊपर लगे पंचशूल सहित यहां बाबा मंदिर परिसर के सभी 22 मंदिरों पर लगे पंचशूलों को साल में एक बार शिवरात्रि के दिन पूरे विधि-विधान से नीचे उतारा जाता है और सभी को एक निश्चित स्थान पर रखकर विशेष पूजा कर फिर से वहीं स्थापित कर दिया जाता है." गौरतलब बात है कि पंचशूल को मंदिर से नीचे लाने और फिर ऊपर स्थापित करने का अधिकार स्थानीय एक ही परिवार को प्राप्त है. 

गौरतलब है कि वर्ष भर शिवभक्तों की यहां भारी भीड़ लगी रहती है, परंतु सावन महीने में यह पूरा क्षेत्र केसरिया पहने शिवभक्तों से पट जाता है. भगवान भोलेनाथ के भक्त 105 किलोमीटर दूर बिहार के भागलपुर के सुल्तानगंज में बह रही उत्तर वाहिनी गंगा से जलभर कर पैदल यात्रा करते हुए यहां आते हैं और बाबा का जलाभिषेक करते हैं.

1 comment: