Thursday, 16 August 2018

और एक युगपुरुष नहीं रहे


और एक युगपुरुष नहीं रहे ...........

आज तो दुश्मन भी रो पड़ेंगे..........

मैं जी भर जिया, 
मैं मन से मरूं, 

लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं

क्यूँ व्यर्थ चिंतित हो, मैं यहीं था यहीं हूँ और यहीं रहूँगा।

मैं अटल हूँ मैं सत्य हूँ मैं सबके दिलों में रहूँगा।।





ठन गई मौत से ठन गई जूझने का मेरा इरादा न था मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था रास्ता रोक वह खड़ी हो गई यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई मौत की उमर क्या है?दो पल भी नहीं ज़िन्दगी सिलसिला,आज कल की नहीं मैं जी भर जिया,मैं मन से मरूँ लौटकर आऊँगा,कूच से क्यों डरूँ
भारत रत्न श्री अटल बिहारी बाजपाई


भारतीय राजनीति के "राष्ट्रवाद युग" के सबसे चमकीले हस्ताक्षर को श्रद्धांजलि!

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