श्री कृष्ण जन्माष्टमी
नन्द को आनंद भयो !!!.....जय कन्हैया लाल की !!!!
क्यों मानते है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को ही कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों के मतानुसार श्री कृष्ण का जन्म का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय हुआ था। अत: भाद्रपद मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग हो तो वह और भी भाग्यशाली माना जाता है इसे जन्माष्टमी के साथ साथ जयंती के रूप में भी मनाया जाता है
कब है श्री कृष्ण जन्माष्टमी
इस साल श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2 सितम्बर 2018 दिन रविवार को मनाई जाएगी, वहीं उदया तिथि अष्टमी एवं उदय कालिक रोहिणी नक्षत्र को मानने वाले वैष्णव जन 3 सितम्बर सोमवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत पर्व मनाएंगे।
यद्यपि अष्टमी तिथि रविवार को शाम 5 बजकर 9 मिनट से प्रारम्भ होकर सोमवार को दोपहर दिन में 3 बजकर 29 मिनट तक व्याप्त रहेगी। साथ ही रोहिणी नक्षत्र भी रविवार की सायं 6 बजकर 29 मिनट से प्रारम्भ होकर अगले दिन सोमवार को दिन में 5 बजकर 35 मिनट तक व्याप्त रहेगी। इस प्रकार 2 सितम्बर दिन रविवार को ही अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र दोनों का योग अर्धरात्रि के समय मिल रहा है। इसलिए 2 सितम्बर दिन रविवार को ही जयन्ती योग में श्रीकृष्णावतार एवं जन्माष्टमी का व्रत सबके लिए होगा।
कैसे हुआ श्री कृष्णा का जन्म
जन्माष्टमी की कथा कुछ ऐसी है कि द्वापर युग में जब पृथ्वी पर बोझ बढ़ने लगा तो उन्होंने श्री नारायण से गुहार लगाई. धरती मांं की गुहार पर प्रभु ने उन्हें वचन दिया कि एक और अवतार लेंगे और यहीं से शुरू होती है लीला प्रधान श्री कृष्ण के अवतार की कथा. वसुदेव नवविवाहित देवकी और कंस के साथ गोकुल जा रहे थे तभी एक आकाशवाणी हुई कि कंस! जिस बहन को इतने प्यार से तू लेकर जा रहा है उसके गर्भ का 8वांं पुत्र तेरा काल होगा. इसके बाद कंस ने एक के बाद नंद और देवकी के सात पुत्र मार दिए और फिर अवतार लिया भगवान श्री कृष्ण का. इसी के उपलक्ष्य में हम जन्माष्टमी का त्यौहार मनाते हैं.
भादो की आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में शंख, चक्र, गदाधारी भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया. उनके जन्म के समय उस कारागार की छठा भी स्वर्ग जैसी हो गई जहांं वसुदेव और देवकी बंद थे. नारायण की यह लीला देखकर देवकी और वसुदेव अभीभूत हो गए. उसके बाद श्री कृष्ण ने वसुदेव को निर्देश दिए और बाल रूप में आ गए. इसके बाद कारागर में अद्भुत घटनाएंं हुईं. वसुदेव की हथकड़ियांं खुल गईं. सारे द्वार पाल सो गए. वसुदेव कृष्ण को उठाकर वृंदावन की ओर चल दिए.
रास्ते में यमुना पड़ती थी. वो भी भादो की उफनती यमुना. वसुदेव यमुना पार कर ही रहे थे कि मांं यमुना कृष्ण के चरण छूने के लिए मचल उठी. वसुदेव टोकरी को जितना ऊपर उठाते यमुना उतना ही ऊपर आती जाती. एक वक्त ऐसा आया जब वसुदेव के सर के ऊपर तक यमुना का जलस्तर बढ़ गई. इसके बाद श्रीकृष्ण ने अपना पैर नीचे लटका दिया और यमुना चरण छूकर सिमट गईं.
आधी रात के अगले पहर वसुदेव महाराज नंद के घर पहुंंचे और उनकी नवजात बच्ची को उठाकर उनकी जगह कृष्ण को रख दिया और वापस चले आए. वापस आकर कारागार का सारा दृश्य फिर पहले जैसा हो गया. उनकी हथकड़ियांं लग गईं. पहरेदार जाग गए. आधी रात के तीसरे पहर जब कंस को पता चला कि देवकी के पुत्री पैदा हुई है तो वो कारागार आया, लेकिन माया स्वरूपा कन्या का वो कुछ नहीं कर सका. उसके बाद कृष्ण की लीलाएंं चलती रही.
श्री कृष्ण की जन्मलीला कई मायनों में उनके जीवन की पहली और सबसे महत्वपूर्ण लीला थी. श्री कृष्ण की उसी छटा को याद करते हुए हम जन्माष्टमी मनाते हैं. इस बार उसी रोहिणी नक्षत्र में जन्माष्टमी पड़ रही है. एक बार फिर से जन्माष्टमी की ढेर सारी शुभकामनाएंं.
कैसे मनाये श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
जन्माष्टमी की सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि करने के बाद सभी देवताओं को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके व्रत का संकल्प लें (जैसा व्रत आप कर सकते हैं वैसा संकल्प लें यदि आप फलाहार कर व्रत करना चाहते हैं तो वैसा संकल्प लें और यदि एक समय भोजन कर व्रत करना चाहते हैं तो वैसा संकल्प लें)।
इसके बाद माता देवकी और भगवान श्रीकृष्ण की सोने, चांदी, तांबा, पीतल अथवा मिट्टी की (यथाशक्ति) मूर्ति या चित्र पालने में स्थापित करें। भगवान श्रीकृष्ण को नए वस्त्र अर्पित करें। पालने को सजाएं। इसके बाद सोलह उपचारों से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी आदि के नाम भी बोलें। अंत में माता देवकी को अर्घ्य दें। भगवान श्रीकृष्ण को फूल अर्पित करें।
रात में 12 बजे के बाद श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। पालने को झूला करें। पंचामृत में तुलसी डालकर व माखन मिश्री का भोग लगाएं। आरती करें और रात्रि में शेष समय स्तोत्र, भगवद्गीता का पाठ करें। दूसरे दिन पुन: स्नान कर जिस तिथि एवं नक्षत्र में व्रत किया हो, उसकी समाप्ति पर व्रत पूर्ण करें।
इसके बाद माता देवकी और भगवान श्रीकृष्ण की सोने, चांदी, तांबा, पीतल अथवा मिट्टी की (यथाशक्ति) मूर्ति या चित्र पालने में स्थापित करें। भगवान श्रीकृष्ण को नए वस्त्र अर्पित करें। पालने को सजाएं। इसके बाद सोलह उपचारों से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी आदि के नाम भी बोलें। अंत में माता देवकी को अर्घ्य दें। भगवान श्रीकृष्ण को फूल अर्पित करें।
रात में 12 बजे के बाद श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। पालने को झूला करें। पंचामृत में तुलसी डालकर व माखन मिश्री का भोग लगाएं। आरती करें और रात्रि में शेष समय स्तोत्र, भगवद्गीता का पाठ करें। दूसरे दिन पुन: स्नान कर जिस तिथि एवं नक्षत्र में व्रत किया हो, उसकी समाप्ति पर व्रत पूर्ण करें।
राधे राधे
No comments:
Post a Comment