Saturday, 8 September 2018

AIIMS at DEOGHAR




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Thursday, 6 September 2018

अजगैबीनाथ मंदिर, सुल्तानगंज

अजगैबीनाथ  मंदिर, सुल्तानगंज 

प्राचीन मंदिरों की तरह, अजगिवनाथ मंदिर की उत्पत्ति भी रहस्य में घिरा हुआ है। 
एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव को यहां अपना धनुष दिया गया था, 
जिसे अजगव के नाम से जाना जाता था, और इसलिए यह स्थान अजगविनाथ के 
नाम से जाना जाने लगा। जगह का प्राचीन नाम जहांगीरा था, जो जहांू मुनी के 
नाम से लिया गया था। जहांगीरा जहांू गिरी (जहांू की पहाड़ी) या जहांु ग्रहा 
(जहांहू का निवास) का एक विकृत रूप है।


ऐसा कहा जाता है कि यह शहर (सुल्तानगंज) दुनिया भर में अपने अजगिवनाथ मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। हर साल लाखों पर्यटक / तीर्थयात्री उत्तरवाहिनी गंगा के पवित्र पानी लेते हैं और इसे 
105 किमी तक ले जाते हैं। देवघर (झारखंड) तक, ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव अपनी इच्छाओं को पूरा करते हैं।

धार्मिक दृष्टिकोण के अलावा, सुल्तानगंज गंगा नदी के किनारे स्थित एक सुन्दर हरियाली साइट है जो पूर्व में उत्तर और पश्चिम बंगाल में प्रकृति की सुंदरता हिमालय से घिरा हुआ है।
 
यह परंपरागत रूप से ऋषि जहांू से जुड़ा हुआ है, जिसका आश्रम सीखने और संस्कृति का केंद्र था।
 जहांू मुनी का आश्रम गंगा नदी के बिस्तर से बाहर चट्टान पर स्थित था। अब इस साइट में 
अजगीविनाथ का शिव मंदिर है, जिसे गाबिनाथ महादेव भी कहा जाता है। 
कहानी यह है कि समुद्र के रास्ते पर गंगा नदी ने अपनी धाराओं में घूमने से मुनी को अपने
 ध्यान में बाधित कर दिया। संत ऋषि ने नदी को निगल लिया। भागीरथ ने हस्तक्षेप किया 
और मुनी ने फिर से उसकी जांघ में चीरा बनाकर उसे बाहर निकाला। यही कारण है कि 
गंगा नदी को जहांवी भी कहा जाता है।
 
मंदिर भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित है, वहां कई मूर्तियां हैं और अन्य हिंदू भगवान की प्रतिमा है और देवी यहां पाई जा सकती है
जिसमें शामिल हैं: भगवान गणेश, भगवान हनुमान, भगवान राम, भगवान सूर्य, देवी दुर्गा,
देवी काली और बहुत सारे। इस मंदिर की उत्पत्ति से जुड़े कुछ ऐतिहासिक मिथक हैं,
मंदिर चट्टान पर दृढ़ता से
बनाया गया है और इसमें अद्भुत चट्टान मूर्तिकला और कुछ शिलालेखों की एक श्रृंखला है।
इस मंदिर में रॉक पैनल मूर्तिकला के कुछ नमूने भारत में कहीं भी किसी भी सबसे
प्रसिद्ध ज्ञात नमूने के खिलाफ अपना खुद का पकड़ सकते हैं। दुर्भाग्य से, अध्ययन नहीं
किया गया है, यहां रॉक मूर्तिकला और शिलालेखों से बना है।
मूर्तिकला बाद में पाला अवधि
के लिए लिया जा सकता है साइट बहुत आकर्षक है और विशेष रूप से बरसात के मौसम के
दौरान, मां गंगा के छिड़काव के पानी मंदिर के चरणों को धोते हैं।
चट्टान के लिए जहांगीरा नाम कम से कम 1824-25 तक जारी रहा था, जब बिशप हेबर ने क्षेत्र का दौरा किया था। हेबर जर्नल,
वॉल्यूम में। 1, जांगीरा के कब्जे में चट्टान पर मंदिर के एक पेंसिल स्केच है।
पेंसिल स्केच मंदिर के किनारे एक मस्जिद दर्शाता है। आमतौर पर यह कहा जाता है कि
काला पहाड़, हिंदू मंदिरों के खिलाफ अपने क्रूसेड के दौरान, इस जगह का दौरा किया।
उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया लेकिन अजगीविनाथ मंदिर को ध्वस्त करने में नाकाम रहे।


Wednesday, 5 September 2018

शिक्षक दिवस पर विशेष...........




गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः

गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः




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गुरुर ब्रह्मा : गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं.
गुरुर विष्णु : गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं.
गुरुर देवो महेश्वरा : गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं.
गुरुः साक्षात : सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष
परब्रह्म : सर्वोच्च ब्रह्म
तस्मै : उस एकमात्र को
गुरुवे नमः : उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करता हूँ.

शिक्षकों का दिन हर साल 5 सितंबर को भारत भर में मनाया जाता है, जो पूर्व राष्ट्रपति, शिक्षक, शिक्षक और विद्वान डॉ। सरवेपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन भी है।

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वर्ष 1962 में, जब डॉ राधाकृष्णन ने अपना पद संभाला, तो पहले शिक्षकों का दिन मनाया गया। पूर्व राष्ट्रपति का जन्म 1882 में आंध्र प्रदेश के तिरुतानी में तेलुगू ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अपने समय के एक उच्च शिक्षित व्यक्ति, डॉ। राधाकृष्णन ने मद्रास विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर किया, जिसके बाद उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ाया।


बाद में, उन्होंने आंध्र विश्वविद्यालय के साथ-साथ बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में कार्य किया। इन सभी उपलब्धियों के बाद, उन्हें पूर्वी धर्म के स्पैल्डिंग प्रोफेसर की अध्यक्षता करने के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी आमंत्रित किया गया था।
डॉ। राधाकृष्णन को हमारे देश के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया था और उनके जन्मदिन मनाने के लिए बहुत से लोगों ने अनुरोध किया था।
लेकिन, डॉ राधाकृष्णन नहीं चाहते थे कि उनका जन्मदिन मनाया जाए, बल्कि महान व्यक्ति ने कहा कि उन्हें सम्मानित किया जाएगा यदि उनका जन्मदिन भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा सके ताकि शिक्षकों और उनके द्वारा किए गए सभी कार्यों का सम्मान किया जा सके। समाज के लिए


डॉ राधाकृष्णन एक प्राप्तकर्ता थे, एक मानवीय और युवाओं के लिए एक प्रेरणा थी। उन्हें 1 9 31 में भारत रत्न और नाइटहुड जैसे कई अन्य नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इतना ही नहीं, उन्हें अपने पूरे जीवनकाल में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए ग्यारह बार नामित किया गया था।

वह अपने सभी छात्रों से प्यार करता था और एक अद्भुत, संवादात्मक और पहुंचने योग्य शिक्षक होने के लिए जाना जाता था। वह हमेशा मदद करने के लिए तैयार था और हमेशा अपने छात्रों के लिए वहां था। अपने जयंती से अपने शिक्षकों का जश्न मनाने के लिए कोई बेहतर दिन नहीं हो सकता है।

शिक्षक दिवस पूरे भारत में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। छात्र शिक्षकों के लिए कार्ड बनाते हैं, उपहार देते हैं और उनकी अनिवार्य भूमिका के लिए धन्यवाद देते हैं। प्रत्येक व्यक्ति यह स्वीकार करता है कि शिक्षक कैसे छात्रों के जीवन को आकार देता है और हमें उनके प्रति आभारी होना चाहिए।

"सपना शुरू होता है, ज्यादातर समय, एक शिक्षक के साथ जो आपके ऊपर विश्वास करता है, जो टग्स और धक्का देता है और आपको अगले पठार में ले जाता है, कभी-कभी आपको सच्ची नामक एक तेज छड़ी के साथ पोक करता है" - दान रादर।

तो, इस साल, आगे बढ़ें और पूर्ण राष्ट्रों के साथ हमारे राष्ट्रों 57 वें शिक्षक दिवस का जश्न मनाएं और अपने शिक्षकों को यह बताएं कि आपने जो कुछ किया है, उसके लिए आप कितनी सराहना करते हैं और मूल्यवान हैं।



Saturday, 1 September 2018

नन्द को आनंद भयो !!!.....जय कन्हैया लाल की !!!! श्री कृष्ण जन्माष्टमी

श्री कृष्ण जन्माष्टमी
नन्द को आनंद भयो !!!.....जय कन्हैया लाल की !!!!
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क्यों मानते है  श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को ही कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों के मतानुसार श्री कृष्ण का जन्म का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय हुआ था। अत: भाद्रपद मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग हो तो वह और भी भाग्यशाली माना जाता है इसे जन्माष्टमी के साथ साथ जयंती के रूप में भी मनाया जाता है
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कब है श्री कृष्ण जन्माष्टमी
इस साल श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2 सितम्बर 2018 दिन रविवार को मनाई जाएगी, वहीं उदया तिथि अष्टमी एवं उदय कालिक रोहिणी नक्षत्र को मानने वाले वैष्णव जन 3 सितम्बर सोमवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत पर्व मनाएंगे।  
यद्यपि अष्टमी तिथि रविवार को शाम 5 बजकर 9 मिनट से प्रारम्भ होकर सोमवार को दोपहर दिन में 3 बजकर 29 मिनट तक व्याप्त रहेगी। साथ ही रोहिणी नक्षत्र भी रविवार की सायं 6 बजकर 29 मिनट से प्रारम्भ होकर अगले दिन सोमवार को दिन में 5 बजकर 35 मिनट तक व्याप्त रहेगी। इस प्रकार 2 सितम्बर दिन रविवार को ही अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र दोनों का योग अर्धरात्रि के समय मिल रहा है। इसलिए 2 सितम्बर दिन रविवार को ही जयन्ती योग में श्रीकृष्णावतार एवं जन्माष्टमी का व्रत सबके लिए होगा।

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कैसे हुआ श्री कृष्णा का जन्म 

जन्माष्टमी की कथा कुछ ऐसी है कि द्वापर युग में जब पृथ्वी पर बोझ बढ़ने लगा तो उन्होंने श्री नारायण से गुहार लगाई. धरती मांं की गुहार पर प्रभु ने उन्हें वचन दिया कि एक और अवतार लेंगे और यहीं से शुरू होती है लीला प्रधान श्री कृष्ण के अवतार की कथा. वसुदेव नवविवाहित देवकी और कंस के साथ गोकुल जा रहे थे तभी एक आकाशवाणी हुई कि कंस! जिस बहन को इतने प्यार से तू लेकर जा रहा है उसके गर्भ का 8वांं पुत्र तेरा काल होगा. इसके बाद कंस ने एक के बाद नंद और देवकी के सात पुत्र मार दिए और फिर अवतार लिया भगवान श्री कृष्ण का. इसी के उपलक्ष्य में हम जन्माष्टमी का त्यौहार मनाते हैं.
भादो की आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में शंख, चक्र, गदाधारी भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया. उनके जन्म के समय उस कारागार की छठा भी स्वर्ग जैसी हो गई जहांं वसुदेव और देवकी बंद थे. नारायण की यह लीला देखकर देवकी और वसुदेव अभीभूत हो गए. उसके बाद श्री कृष्ण ने वसुदेव को निर्देश दिए और बाल रूप में आ गए. इसके बाद कारागर में अद्भुत घटनाएंं हुईं. वसुदेव की हथकड़ियांं खुल गईं. सारे द्वार पाल सो गए. वसुदेव कृष्ण को उठाकर वृंदावन की ओर चल दिए.

रास्ते में यमुना पड़ती थी. वो भी भादो की उफनती यमुना. वसुदेव यमुना पार कर ही रहे थे कि मांं यमुना कृष्ण के चरण छूने के लिए मचल उठी. वसुदेव टोकरी को जितना ऊपर उठाते यमुना उतना ही ऊपर आती जाती. एक वक्त ऐसा आया जब वसुदेव के सर के ऊपर तक यमुना का जलस्तर बढ़ गई. इसके बाद श्रीकृष्ण ने अपना पैर नीचे लटका दिया और यमुना चरण छूकर सिमट गईं.
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आधी रात के अगले पहर वसुदेव महाराज नंद के घर पहुंंचे और उनकी नवजात बच्ची को उठाकर उनकी जगह कृष्ण को रख दिया और वापस चले आए. वापस आकर कारागार का सारा दृश्य फिर पहले जैसा हो गया. उनकी हथकड़ियांं लग गईं. पहरेदार जाग गए. आधी रात के तीसरे पहर जब कंस को पता चला कि देवकी के पुत्री पैदा हुई है तो वो कारागार आया, लेकिन माया स्वरूपा कन्या का वो कुछ नहीं कर सका. उसके बाद कृष्ण की लीलाएंं चलती रही.
श्री कृष्ण की जन्मलीला कई मायनों में उनके जीवन की पहली और सबसे महत्वपूर्ण लीला थी. श्री कृष्ण की उसी छटा को याद करते हुए हम जन्माष्टमी मनाते हैं. इस बार उसी रोहिणी नक्षत्र में जन्माष्टमी पड़ रही है. एक बार फिर से जन्माष्टमी की ढेर सारी शुभकामनाएंं.

कैसे मनाये श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
जन्माष्टमी की सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि करने के बाद सभी देवताओं को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके व्रत का संकल्प लें (जैसा व्रत आप कर सकते हैं वैसा संकल्प लें यदि आप फलाहार कर व्रत करना चाहते हैं तो वैसा संकल्प लें और यदि एक समय भोजन कर व्रत करना चाहते हैं तो वैसा संकल्प लें)।
इसके बाद माता देवकी और भगवान श्रीकृष्ण की सोने, चांदी, तांबा, पीतल अथवा मिट्टी की (यथाशक्ति) मूर्ति या चित्र पालने में स्थापित करें। भगवान श्रीकृष्ण को नए वस्त्र अर्पित करें। पालने को सजाएं। इसके बाद सोलह उपचारों से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी आदि के नाम भी बोलें। अंत में माता देवकी को अर्घ्य दें। भगवान श्रीकृष्ण को फूल अर्पित करें।
रात में 12 बजे के बाद श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। पालने को झूला करें। पंचामृत में तुलसी डालकर व माखन मिश्री का भोग लगाएं। आरती करें और रात्रि में शेष समय स्तोत्र, भगवद्गीता का पाठ करें। दूसरे दिन पुन: स्नान कर जिस तिथि एवं नक्षत्र में व्रत किया हो, उसकी समाप्ति पर व्रत पूर्ण करें।

राधे राधे

Wednesday, 22 August 2018


रक्षा बंधन 
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येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)"

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रक्षाबन्धन एक हिन्दू व जैन त्योहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं।[1] रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है।

कैसे करें राखी बांधने की तैयारी??
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 इस दिन बहने प्रात: काल में स्नानादि से निवृ्त होकर, कई प्रकार के पकवान बनाती है. इसके बाद पूजा की थाली सजाई जाती है. थाली में राखी के साथ कुमकुम रोली, हल्दी, चावल, दीपक, अगरबती, मिठाई और कुछ पैसे भी रखे जाते है. भाई को बिठाने के लिये उपयुक्त स्थान का चयन किया जाता है.
सर्वप्रथम अपने ईष्ट देव की पूजा की जाती है. भाई को चयनित स्थान पर बिठाया जाता है. इसके बाद कुमकुम हल्दी से भाई का टीका करके चावल का टीका लगाया जाता है. अक्षत सिर पर छिडके जाते है. आरती उतारी जाती है. और भाई की दाहिनी कलाई पर राखी बांधी जाती है. पैसे उसके सिर से उतारकर, गरीबों में बांट दिये जाते है.
रक्षा बंधन पर बहने अपने भाईयों को राखी बांधने के बाद ही भोजन ग्रहण करती है. भारत के अन्य त्यौहारों की तरह इस त्यौहार पर भी उपहार और पकवान अपना विशेष महत्व रखते है. इस पर्व पर भोजन प्राय: दोपहर के बाद ही किया जाता है. इस समय विवाहिता स्त्रियां लम्बा सफर तय कर, राखी बांधने के लिये अपने मायके अपने भाईयों के पास आती है. इस दिन पुरोहित तथा आचार्य सुबह सुबह अपने यजमानों के घर पहुंचकर उन्हें राखी बांधते है, और बदले में धन वस्त्र, दक्षिणा स्वीकार करते है

राखी बांधते समय बहनें निम्न मंत्र का उच्चारण करें, इससे भाईयों की आयु में वृ्द्धि होती है.
येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: I तेन त्वांमनुबध्नामि, रक्षे मा चल मा चल II
राखी बांधते समय उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करना विशेष शुभ माना जाता है. इस मंत्र में कहा गया है कि जिस रक्षा डोर से महान शक्तिशाली दानव के राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबंधन से में तुम्हें बांधती हूं यह डोर तुम्हारी रक्षा करेगी.
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रक्षा बंधन  मुहूर्त 2018
१. पहला सुबह मुहूर्त : सुबह 9:05am से दोपहर 12:05pm तक
२. दूसरा सुबह मुहूर्त 01:30pm से शाम 03:00pm तक
३. तीसरा सुबह मुहूर्त शाम 06:00pm से रात्रि के 09:00pm तक